Wednesday, October 30, 2019

आ गए हम आपके गाँव में



लो आ गए हम आपके गाँव में, नदिया किनारे पेड़ की छाँव में।
आपकी शरण में हम आ गये हैं, स्वस्थ सार्थक कर्म की चाह में।

हमारे शहर में, पानी ही नहीं, हवा भी नहीं है।
जीवन ना सहज, पल-पल समस्या गहन हो रही है।   
गाँव के पशु वाहन आहीस्ता, मिलती शान्ति यहीं। 
स्त्री पुरुष परिश्रम करते हैं, हो पाती क्लान्ति नहीं।
किसान यहां हैं, मज़दूर भी है, नहीं कोई किसी के दांव में।
लो आ गए हम आपके गाँव में, नदिया किनारे पेड़ की छाँव में।

शहर में नहीं ज़मीं कहीं, आसमां भी नहीं होता।
सूख गया बचपन सारा, जोश जवानी है सोता।
गाँव गाँव घर का आँगन, ज़मीं आसमां का घर है।    
बच्चे अब भी हँसते हैं, युवा पसीने में तर हैं।
गाँव का जीवन, स्वतः संचालित, सागर लहरों पर बहती नाव में।
लो आ गए हम आपके गाँव में, नदिया किनारे पेड़ की छाँव में।

कृत्रिम होते गाल लाल,१४  चश्मा चमचम आँखों पर।
शहरी धरती पथरीली, चरण छमछम छालों पर।
गाँव की भूमि नरम धूल, ओस बिखेरे मोती है।
देह जब धूल धूसरित, चन्दन सुगंध होती है।
चलो छोड़ें शहर, बस जाएँ यहीं, चलन सामर्थ्य उगे पुनः पाँव में।
लो आ गए हम आपके गाँव में, नदिया किनारे पेड़ की छाँव में।

शहरी प्रभाव में  रूप मानव का हर क्षण बदल रहा।
कद में कमी उदार उदर, कपाल कुपोषित हो रहा।      
 मल मूत्र विसर्जन विलम्ब, पद चलन दूभर कर दिया।
चिन्तनशून्य मस्तिष्क ने, अर्थहीन शब्द कर दिया।
बौद्धिक प्रकाश में महामानव उगे, शेष रहें बौद्धिक छाँव में।
लो आ गए हम आपके गाँव में, नदिया किनारे पेड़ की छाँव में।
आपकी शरण में हम आ गये हैं, स्वस्थ सार्थक कर्म की चाह में।

Sunday, October 27, 2019

कर्मयोग



सांस का जो भोग है
निष्ठां इसका उपयोग है। 
लक्ष्य इसका निर्धारित है -
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना।

यदि कभी मैं भटक जाऊँ, 
संसार मोह में अटक जाऊँ। 
तुम मुझको याद दिला देना,
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना।

कर्म का विधान हो,
निष्ठां का वरदान हो। 
ज्ञानयोग इसकी आत्मा, 
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना।

ज्ञान केवल मार्ग है,
कर्म ही मुकाम है। 
परिणाम कुछ भी हो मगर, 
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना।

परिणाम बस परिधान है
जब ज्ञान प्रबल मान है। 
स्वयं जागृत हो जाती,
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना।

परिणाम यदि प्रतिकूल है
निष्ठां नहीं अनुकूल है। 
ध्यान का संकेन्द्रण,
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना। 

कर्म ही जीवन का प्राण है, 
इसकी गुणता परिणाम है। 
ध्यानयोग से सबल होती,
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना। 

ध्यानयोग का अर्थ यही, 
कोई अन्य  विचार नहीं। 
इसका ही प्रभाव है, 
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना ।

निज कर्म की धारणा, 
आत्म-विश्वास की उपासना
इसीलिये महान है,
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना।

गीता का उपदेश यह 
हृषिकेश द्वारा ज्ञान यह 
जो युद्ध क्षेत्र में दिया -
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना।

हरिष्केष विष्णु के पिता,
भारत के राजा निर्मिता। 
निष्काम कर्म उपदेश उनका
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना। 

गीता खलनायक कृष्ण,
हरी भी  छलिया भी कृष्ण,
उसने किया सदा विरोध,
उच्च मानवी आराधना, कर्मयोग की साधना। 

चांदनी बनी दुल्हन मेरी



ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में, देख तुम्हें ठिठके हैं कदम।   
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में, स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।       

तुम गाँव की गोरी चाँद की छोरी, शांत प्रशांत निशीथ क्षण मैं।   
सूना था आँगन अब रुनझुन पायल, चिराग हो तुम अँधियारा मैं।  
चांदनी पटल पर मैंने गीत लिखा, उस अनुराग का तुम गहना।      
मेरा गीत अजर संगीत अमर, तुम इसको गुनगुनाती रहना।  
मधुवन का मोहक बंधन ऐसा, प्रसंग प्रेम का प्रवाह अनुपम।   
ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में,  देख तुम्हें ठिठके हैं कदम। 
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में,  स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।    

चांदनी तन है खुशबू श्रृंगार, रुनझुन पायल खुद छनक उठी। 
देखकर नृत्य में खोई हो तुम, साथ देने बदरी मचल उठी।
वंशी में बसा सुरमय सुर उभरा, चकोर मस्त चंद्र दर्शन में।     
मदमय मयूर हुए मगन नृत्य में, मयूरी मचली आँगन में। 
सहर कैसे होगी इस रात्रि की, सूरज ने बनाया घर कंगन।      
ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में, देख तुम्हें ठिठके हैं कदम। 
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में, स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।    

तन युगल मद से बोझिल हो चुके हैं, संवादों का अंत हुआ है।  
शब्द हमारे बस गए साँसों में, साँसों का भी विलय हुआ है। 
सन्नाटा भी शान्त हुआ है, चिर प्रतीक्षित प्रथम स्पर्श का क्षण।     
सुहाग चतुर्दशी को व्याकुल मैं, क्यों मिलन वेला बस एक क्षण।       
अब प्रकाश नित संवर्धित होगा, जब पुनः प्राप्त होगा यह चमन।       
ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में, देख तुम्हें ठिठके हैं कदम। 
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में, स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।    


    

पाया कहीं नहीं भगवान्



पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

मानव बाहर से आँका,
उसका अंतर्मन झाँका।  
हर व्यक्ति विशुद्ध महान, 
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

धर्म जो दिखाया जाता,
बचपन से सिखाया जाता।  
छल कपट की पहचान,   
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

जन्म समय नास्तिक सच्चा,
पलने पर आस्तिक बच्चा।  
होता पालन में अज्ञान,
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

मनुष्य के बस दो प्रकार,
मानव देने का साकार।   
दानव लेता रहता दान, 
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है।

भयंकर षड्यंत्र धर्म है,
मानव के प्रतिकूल कर्म है। 
भय उत्पत्ति इसकी शान, 
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

धर्म से जो मुक्त हुआ,
पावन स्व से युक्त हुआ। 
हो गया मौलिक इंसान,
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान,  
यह रचना हो रही है। 

धर्म राजनैतिक प्रदूषण,
दानव जाति का आभूषण।  
कर रहा शोषण आसान,  
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 
  

Saturday, October 26, 2019

नेताओं से बचे रहेंगे।



सरकार की हमें नहीं जरूरत, १८
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, १८ नेताओं से बचे रहेंगे। १४

जो तन मन से मेहनत करेगा, १८  
खाएगा पियेगा मौज करेगा। १९
जो मेहनत करने से बचेगा, १८
भूखा नंगा परेशान रहेगा। १९
अमर सिद्धांत यही खूबसूरत १८         
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

नेता अपनों को शिक्षा देते १७
शिक्षित होते वो अफसर बनते १८
अनपढ़ रहते, नेता बन जाते १७
नेता बनकर वे शासन करते १८    
इससे समझो शासन की कूबत १८
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

नेता खुद अय्याशी करते हैं, १८
हमसे परिश्रम करने को कहते, १८  
हमारा धन जेबों में भरकर, १७
हमको कंगाल बनाकर रखते। १८
इसी से हर समय जनता डूबत १८
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

हम सर्दी गर्मी दोनों सहते १८
अनुकूल ताप में नेता रहते हैं।   
जब पसीना हमारा बहता है   १८
नेता ख़ुशी अनुभव करते हैं १९
ऐसे नेता लगते बदसूरत १८
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

नेता काजू की रोटी खाते, १८ 
हमको रूखा टुकड़ा चलता। १८
वस्त्र हमारे हफ्ते में धुलते, १८
नेता पल पल पोषाक बदलता।  १८    
भारत के नेता ऐसे धूरत १९
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

सरकार हमको बहुत रुलाती १६
टैक्स लगा महंगाई बढ़ाती, १७
नेता सब कुछ मुफ्त पाते हैं १७
हमको टुकड़ों को भी तरसाती। १८
नेता जैसी सरकारी मूरत १८
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे। 

बिन सरकार हम शहर छोड़ेंगे
शुद्ध जलवायु के गाँव रहेंगे।
जरूरतें अपनी कम रखेंगे,
उनका खुद उत्पादन करेंगे।
बापू के ग्राम स्वराज की मूरत
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

बिजली सूरज से निःशुल्क लेंगे, 
पानी प्रकाश बिजली से लेंगे। १८  
यात्रा हम साइकिल से करेंगे, 
शारीरिक श्रम से स्वस्थ रहेंगे।
सब बच्चे होंगे गाँव सम्पूरक,
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।  

गाँव में हम खेती बाड़ी करेंगे, १८  
खेतों में सब्जी अन्न उगेंगे।  १८  
अपने बगीचों से फल खाएंगे, १९
भोजन के हम विकल्प पाएंगे।   
स्वस्थ बनें प्रेरणा के पूरक।  २० 
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

घर घर बकरी मुर्गी पालेंगे, 
कुत्ते बिल्ली चूहे न तारेंगे। १८ 
बन्दर सूअर रोगों के मूल १८   
इनका पालन मानव की भूल १४
स्वस्थ रहेंगे परस्पर प्रतिपूरक,
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

ग्राम्य उत्पाद के उद्यम होंगे। २० 
गाँव गाँव खुद सक्षम होंगे। 
उद्योगों से रोज़गार मिलेगा, १८  
घर रहकर सबको काम मिलेगा। १८
गाँव की आज़ादी व्यक्ति परिपूरक 
सरकार की हमें नहीं जरूरत,
इसके बिना हम अच्छे रहेंगे, नेताओं से बचे रहेंगे।

Thursday, October 24, 2019

अनायास ही उंगली छू गई



अनायास ही उंगली छू गई 

हुई थीं सुबह में जो आँखें चार 
आँखों में भरा था प्यार बेशुमार,
संवाद भी कोई नहीं हुआ था 
किन्तु मैं उसका घर जानता था। 
अब जब ज़िन्दगी की दुपहरी गयी 
यों अनायास ही उंगली छू गई। 

ज़िन्दगी नीरस सिसक रही है 
पीड़ा मन में कसक रही है 
मुलाक़ात होती जो एक बार 
देखता रूबरू क्या है प्यार।
जब साहस किया तो रूह गई 
यों अनायास ही उंगली छू गई।   
  
यूँ कोई खास मक़सद नहीं था 
उठे कदम पहुंचा मैं वहीँ था। 
बीती सदी आधी, देखा मुझको 
याद आयी लक्ष्मण रेखा उसको।
वह भी मेरी तरह ही सहमी हुई, 
यों अनायास ही उंगली छू गई।   

उसके घर में मैं चुप बैठा रहा,
सोच रहा था मैं क्यों आया यहां। 
तभी दो हाथ मेरा स्वागत किये 
मुझसे जलपान का आग्रह लिये।
मेरे उठे हाथ नज़र झुकी रही 
यों अनायास ही उंगली छू गई।

यों तो कुछ विशेष नहीं घटा,
किन्तु मन में एक बवंडर उठा 
वह सहमी सी वहां से चली गई, 
चला आया मैं, आत्मा मर गई। 
जी तो रहा हूँ ज़िन्दगी चू गई 
यों अनायास ही उंगली छू गई। 

Tuesday, October 22, 2019

आओ चलो फिर लौट चलें




आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं.
उन प्रसंगों को युग बीता, फिर भी आज रुलाते हैं। 

पहली बार तुम्हें देखा जब, तब तुम एक किशोरी थीं  
एक दिन तुम होगी मेरी, प्रफुल्लित पोरी पोरी थी। 
गालों पर इठलाता लावण्य आँखें लज्जा से बोझिल 
तुम एक पुस्तक पढ़ रही थीं बेसुध सी थी कोकिल। 
शब्द मचलते ओठों पर, रिमझिम में पत्ते इतराते हैं 
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं। 

एक दिन तुम मेरे घर आईं, मुझे देख शरमाई थीं 
मैं छुप बैठा था दूर कहीं, चाहत की चोरी छुपाई थी.
मन में था विश्वास अटल, पर तन मेरा घबराता था 
नयन बंध जाते डोरी से बस चोरी से मुस्काता था।
उन लम्हों के गीतों को  तन मन अब भी गाते हैं    . 
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं।

तुम कॉलेज से घर आ रहीं थीं मैंने तुमको देखा था 
हर डाली पर फूल खिले थे मौसम भी रंगीला था। 
साहस जुटा कर कैसी हैं आप, मैंने तुमसे पूछा था,
अच्छी हूँ आप कैसे हैं, कुछ आकर्षण मुस्काया था.
प्रथम संवाद ऐसा मोहक जैसे सागर लहराते हैं।     
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं।

समय आने पर हम दोनों जब शादी के अनुकूल हुए 
लेकिन पिताश्री के आदेश मेरे मन के प्रतिकूल हुए.
बहुत रोया था तन मन पर साहस नहीं जुटा पाया
तुम बध गयीं एक डोर से, खुद को मैंने लुटा पाया। 
आज भी अनुशासन के बंधन कांटे से चुभ जाते हैं.
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं। 

कुछ दिन बाद पिताश्री ने मुझको बांधा बंधन में 
बिसराये वो गीत अधूरे, बन ना पाया चन्दन मैं।  
अपने अपने परिवारों में हम दोनों यौं व्यस्त हुए
संबंधों के चंगुल में, पावन मन के अंकुर पस्त हुए।
सूखा सारा जीवन है, पर वो लम्हे बहुत सताते हैं 
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं।  
           

अदृश्य प्रेमिका



अदृश्य प्रेमिका 

मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

उसकी खुशबू मेरी हवा में है
उसकी सूरत मेरी दुआ में है
उसको कभी नहीं देखा न उसको कोई नाम दिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

वो चलती मेरे साथ में है
रास्ते की बरसात में है
बरसाती चादर ओढ़े चलते चलते आराम किया है  
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

काली रात के अंधियारे में
कहा कान के गलियारे में
आओ चलो दूर चलें संसार का सागर पार किया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

उसको भी कोई दुःख होगा,
दुखियारे के पास सुख होगा
दुःख के पथ पर चलते जाएँ ऐसा सपना देख लिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

दुखिया ने दुखिया को चुना 
दुःख दुःख का ताना बाना बुना
दुःख का कहीं क्षितिज होगा यह हमने मान लिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

उसका हाथ मेरे हाथ में है
हरदम रहती मेरे साथ में है
पर दिखाई नहीं देती अपना रूप ऐसा बाँध लिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है। 

चल निकला हूँ बिना डर के
उसके ऊपर विश्वास करके
अब कहीं भी ले जाए उसको साथी मान लिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

कौन है वो मैं नहीं जानता
सदा संग रहेगी यही मानता
दोनों के दुःख मिट जाएंगे ऐसा हमने जान लिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है। 

जो कुछ दिखाई नहीं देता
हमसे कुछ भी नहीं लेता
जो दिखलाई दे रहा उसका छल तो जान लिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है।

उसके पास बैठकर पूछा 
मेरा ही क्यों नाम सूझा
भीड़ भरे संसार में तुम को ही अकेला पा लिया है
मुझको लगता है हरदम, उसने मेरा नाम लिया है। 

Tuesday, October 15, 2019

आज मन उदास है।



काम में मन लगता नहीं, 
आज मन उदास है। 

उसकी परछाईं साथ रहती है 
कभी कभी आँखों से बहती है 
कभी दिखाई नहीं देती 
पर लगता आसपास है 
आज मन उदास है। 

परेशां हूँ खुद से 
ख्वाहिशों की ज़िद से 
यों लगता सब सकून है 
उबल रहा मेरा खून है
चला जाऊं खुद से दूर बहुत  
जहाँ उसके न होने की आस है 
आज मन उदास है। 

कभी जागा सा नहीं रहता 
सोता ही नहीं कैसे जगता 
आसान है कर्म से भागूं 
पर कैसे अपने मन से भागूं 
यहां मानव हताश है 
आज मन उदास है। 

एक दिन ऐसा भी था 
बिन मिले भी मिलना जैसा था 
मन बंधे थे एक डोर से 
भावी आशा के जोर से 
अब आशा ही निराश है 
आज मन उदास है। 

एक दिन अचानक मिल गया 
उसने जो पूछा हिल गया 
हम तुम क्यों दूर हुए 
इतने क्यों मजबूर हुए 
अब भी उत्तर का प्रयास है 
आज मन उदास है।   
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...