Monday, December 30, 2019

मेरी महबूबा





















मेरी महबूबा

चाही थी एक महबूबा, वह   मिली, ऐसी मिली,
दिन रात गूंजती है आवाज़ उसकी मेरे माहौल में,
किन्तु वह बोलती कुछ नहीं है।

उसकी चाहत जाती है बहुत दूर तक
कोई जगह नहीं है उसके बिना,
मैं कुछ कहूँ या ना कहूँ,
किन्तु वह कुछ बोलती नहीं है।

योन तो मुलाक़ात भी कभी नहीं हुई,
कोई पल नहीं होता जब वह मेरे साथ ना हो,
हाथ थामे चले जाते हैं दूर तक,
किन्तु वह बोलती कुछ नहीं है।

रात ही की बात है, उसने पुकारा मुझे ख्वाब में,
अच्छा लगा उसको पास पाकर
किन्तु वह बोलती कुछ नहीं है।

काली घटा सी उसकी ज़ुल्फ़ें ढके रहती हैं मेरे चाँद को,
निमंत्रण है उसकी देह की भाषा में
किन्तु वह बोलती कुछ नहीं है।

चाहता बहुत हूँ वह मुझसे कुछ कहे प्यार से प्यार के लिए,
ताकि मेरा जीवन सफल हो जाए
किन्तु वह बोलती कुछ नहीं है।

नहीं, वह गूंगी नहीं है, बहुत बतियाती है
सहेलियों से, अपने छात्रों से,
मुझसे बस प्यार का इज़हार है,
किन्तु वह बोलती कुछ नहीं है।



Sunday, December 29, 2019

फिर एक ज़िन्दगी














फिर एक ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

थाम मेरा हाथ, मेरे साथ चल,
बहुत देर हो जायेगी अगर बीत गया ये पल।
कर बंद आँखें दुनिया की ओर से,
यह कुछ भी कहेगी, मैं जो तेरे साथ चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

बहुत कोशिश की पाँव धरने को कहीं जमीं मिले,
बस आसमान ने ही सुने मेरे शिकवे-गिले।
इसलिए, ऐ ज़िन्दगी,
आसमान में ही तुझसे मिलने चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

चला हूँ सफर में तो मंज़िल भी मिलेगी,
मुरझा रही है जो कली फिर से खिलेगी।
अपने स्पर्श को आज आजमाने चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

यह इम्तिहान है मेरा, परीक्षक भी कठोर है,
यह मेरी ज़िद है मेरी कामयाबी का दौर है।
जो भी हो देखा जाएगा,
मैं तो बस मंज़िल की ओर चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

Saturday, December 28, 2019


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Tuesday, November 26, 2019

देवी



देवी, बुरा ना मानना,
अगर मैं कहूँ तुम्ही मेरी कहानी हो,
तुम्ही मेरे जीवन की रवानी हो,
मेरे लिए तुम्ही हवा धुप और पानी हो,
इससे आगे और क्या कहूँ -
तुम्ही मेरे जीवन की स्वामिनी हो।

देवी, क्षमा करना मुझे,
अगर बुरा लगा हो मैंने जो कहा,
अगर नहीं जानतीं, मैंने अब तक क्या क्या सहा,
अगर नहीं मानतीं, वही अपना है अपने लिए जिसका आंसू बहा है।
अगर यह मेरी मूर्खता है, मैं भावनाओं में जो बहा,
मैं खुश हूँ, मैं बुद्धिहीन जो रहा।

देवी, सोचना समझना फिर कभी,
आज कुछ जान लो मेरी व्यथा,
आज कहने दो मुझे अपनी कथा.
पैर नंगे कंकड़ों पर चलता रहा हूँ,
वस्त्र चीर चीर हैं कंटकों में उलझता रहा हूँ,
देह का आभास नहीं, आत्म रक्षण के लिए महकता रहा हूँ,
इन्ही बीहड़ों में चलते चलते,
जब से सोचा तुम्हें, अपना समझता रहा हूँ।

देवी, मैं भी कभी एक फूल था,
मुस्कराता, महकता चहकता एक जनून था,
देह में बहता हुआ तप्त खून था।
किन्तु काली कोई टकराई नहीं,
मेरे जोश में भरमाई नहीं,
मैं तरसता ही रहा अनजान था,
मुझे तुम्हारे ही मन में बसने का अरमान था।

देवी, युग बीत गए हैं तुम्हारी तलाश में,
किन्तु मेरा सूरज तो अभी उगा है,
सो रहा था बालपन जो अभी अभी जगा है।
कुछ तुम धरा के ऊपर उठो, कुछ मैं उतरूं आसमान से,
हाँ क्षितिज के रही नहीं, हम बादल बने हैं उफान से।
विश्व को नव संरचना दें, पारस्परिक प्रणाम से,
चलो साथ मेरे, इस प्रभात के सुर गान से। 

 

Saturday, November 23, 2019

O' Woman!




O. woman! though I trust you not on moral darts
Still I love you as resource of beauty and arts.

Though you stabbed my body and soul
I sighed but never cried you foul
As desirous, you are a flower of desires
Breeding seeds of authority of fires
To divide the world into parts
Still I love you as resource of beauty and arts.

O’ woman ! you let me play with your creams
When I was wandering in ruins of my dreams
You had cried as baby in my arms
Sipping your sobs, I found the world of charms
We played together building our homes in sands
Sands dried out like we remain no more friends
That was our schooling in mending of broken carts
Still I love you as resource of beauty and arts.

O’ woman! you taught me well with lists
Life is a game of dreams and grists
You gave me nothing but sorrows
Taking away my present
In exchange of hopes of ‘morrows
I hate you for your teachings parts by parts
Still I love you as resource of beauty and arts.
 
O’ woman! in memory, I find you deeply engraved
As my mother, mother of all those saved
From the coldness of worldly fuss
Forgetting all those builders of castles for us
You didn’t teach us to payback as marts
Still I love you as resource of beauty and arts.

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