Sunday, December 29, 2019

फिर एक ज़िन्दगी














फिर एक ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

थाम मेरा हाथ, मेरे साथ चल,
बहुत देर हो जायेगी अगर बीत गया ये पल।
कर बंद आँखें दुनिया की ओर से,
यह कुछ भी कहेगी, मैं जो तेरे साथ चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

बहुत कोशिश की पाँव धरने को कहीं जमीं मिले,
बस आसमान ने ही सुने मेरे शिकवे-गिले।
इसलिए, ऐ ज़िन्दगी,
आसमान में ही तुझसे मिलने चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

चला हूँ सफर में तो मंज़िल भी मिलेगी,
मुरझा रही है जो कली फिर से खिलेगी।
अपने स्पर्श को आज आजमाने चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

यह इम्तिहान है मेरा, परीक्षक भी कठोर है,
यह मेरी ज़िद है मेरी कामयाबी का दौर है।
जो भी हो देखा जाएगा,
मैं तो बस मंज़िल की ओर चला हूँ,
ज़िन्दगी फिर तेरा एक घूँट पीने चला हूँ,
बाजी लगाकर जान की फिर से जीने चला हूँ।

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