Tuesday, October 15, 2019

आज मन उदास है।



काम में मन लगता नहीं, 
आज मन उदास है। 

उसकी परछाईं साथ रहती है 
कभी कभी आँखों से बहती है 
कभी दिखाई नहीं देती 
पर लगता आसपास है 
आज मन उदास है। 

परेशां हूँ खुद से 
ख्वाहिशों की ज़िद से 
यों लगता सब सकून है 
उबल रहा मेरा खून है
चला जाऊं खुद से दूर बहुत  
जहाँ उसके न होने की आस है 
आज मन उदास है। 

कभी जागा सा नहीं रहता 
सोता ही नहीं कैसे जगता 
आसान है कर्म से भागूं 
पर कैसे अपने मन से भागूं 
यहां मानव हताश है 
आज मन उदास है। 

एक दिन ऐसा भी था 
बिन मिले भी मिलना जैसा था 
मन बंधे थे एक डोर से 
भावी आशा के जोर से 
अब आशा ही निराश है 
आज मन उदास है। 

एक दिन अचानक मिल गया 
उसने जो पूछा हिल गया 
हम तुम क्यों दूर हुए 
इतने क्यों मजबूर हुए 
अब भी उत्तर का प्रयास है 
आज मन उदास है।   

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