Tuesday, October 22, 2019

आओ चलो फिर लौट चलें




आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं.
उन प्रसंगों को युग बीता, फिर भी आज रुलाते हैं। 

पहली बार तुम्हें देखा जब, तब तुम एक किशोरी थीं  
एक दिन तुम होगी मेरी, प्रफुल्लित पोरी पोरी थी। 
गालों पर इठलाता लावण्य आँखें लज्जा से बोझिल 
तुम एक पुस्तक पढ़ रही थीं बेसुध सी थी कोकिल। 
शब्द मचलते ओठों पर, रिमझिम में पत्ते इतराते हैं 
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं। 

एक दिन तुम मेरे घर आईं, मुझे देख शरमाई थीं 
मैं छुप बैठा था दूर कहीं, चाहत की चोरी छुपाई थी.
मन में था विश्वास अटल, पर तन मेरा घबराता था 
नयन बंध जाते डोरी से बस चोरी से मुस्काता था।
उन लम्हों के गीतों को  तन मन अब भी गाते हैं    . 
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं।

तुम कॉलेज से घर आ रहीं थीं मैंने तुमको देखा था 
हर डाली पर फूल खिले थे मौसम भी रंगीला था। 
साहस जुटा कर कैसी हैं आप, मैंने तुमसे पूछा था,
अच्छी हूँ आप कैसे हैं, कुछ आकर्षण मुस्काया था.
प्रथम संवाद ऐसा मोहक जैसे सागर लहराते हैं।     
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं।

समय आने पर हम दोनों जब शादी के अनुकूल हुए 
लेकिन पिताश्री के आदेश मेरे मन के प्रतिकूल हुए.
बहुत रोया था तन मन पर साहस नहीं जुटा पाया
तुम बध गयीं एक डोर से, खुद को मैंने लुटा पाया। 
आज भी अनुशासन के बंधन कांटे से चुभ जाते हैं.
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं। 

कुछ दिन बाद पिताश्री ने मुझको बांधा बंधन में 
बिसराये वो गीत अधूरे, बन ना पाया चन्दन मैं।  
अपने अपने परिवारों में हम दोनों यौं व्यस्त हुए
संबंधों के चंगुल में, पावन मन के अंकुर पस्त हुए।
सूखा सारा जीवन है, पर वो लम्हे बहुत सताते हैं 
आओ चलो फिर लौट चलें, बीते दिन हमें बुलाते हैं।  
           

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