ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में, देख तुम्हें ठिठके हैं कदम।
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में, स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।
तुम गाँव की गोरी चाँद की छोरी, शांत प्रशांत निशीथ क्षण मैं।
सूना था आँगन अब रुनझुन पायल, चिराग हो तुम अँधियारा मैं।
चांदनी पटल पर मैंने गीत लिखा, उस अनुराग का तुम गहना।
मेरा गीत अजर संगीत अमर, तुम इसको गुनगुनाती रहना।
मधुवन का मोहक बंधन ऐसा, प्रसंग प्रेम का प्रवाह अनुपम।
ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में, देख तुम्हें ठिठके हैं कदम।
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में, स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।
चांदनी तन है खुशबू श्रृंगार, रुनझुन पायल खुद छनक उठी।
देखकर नृत्य में खोई हो तुम, साथ देने बदरी मचल उठी।
वंशी में बसा सुरमय सुर उभरा, चकोर मस्त चंद्र दर्शन में।
मदमय मयूर हुए मगन नृत्य में, मयूरी मचली आँगन में।
सहर कैसे होगी इस रात्रि की, सूरज ने बनाया घर कंगन।
ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में, देख तुम्हें ठिठके हैं कदम।
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में, स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।
तन युगल मद से बोझिल हो चुके हैं, संवादों का अंत हुआ है।
शब्द हमारे बस गए साँसों में, साँसों का भी विलय हुआ है।
सन्नाटा भी शान्त हुआ है, चिर प्रतीक्षित प्रथम स्पर्श का क्षण।
सुहाग चतुर्दशी को व्याकुल मैं, क्यों मिलन वेला बस एक क्षण।
अब प्रकाश नित संवर्धित होगा, जब पुनः प्राप्त होगा यह चमन।
ओस की छाँव में चाँदनी गाँव में, देख तुम्हें ठिठके हैं कदम।
यौवन प्रहर में खुशबू शहर में, स्वस्तिक नामक आश्रम अपन।
No comments:
Post a Comment
PLEASE COMMENT ON THE POST AND FOLLOW THE BLOG