Sunday, October 27, 2019

पाया कहीं नहीं भगवान्



पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

मानव बाहर से आँका,
उसका अंतर्मन झाँका।  
हर व्यक्ति विशुद्ध महान, 
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

धर्म जो दिखाया जाता,
बचपन से सिखाया जाता।  
छल कपट की पहचान,   
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

जन्म समय नास्तिक सच्चा,
पलने पर आस्तिक बच्चा।  
होता पालन में अज्ञान,
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

मनुष्य के बस दो प्रकार,
मानव देने का साकार।   
दानव लेता रहता दान, 
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है।

भयंकर षड्यंत्र धर्म है,
मानव के प्रतिकूल कर्म है। 
भय उत्पत्ति इसकी शान, 
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 

धर्म से जो मुक्त हुआ,
पावन स्व से युक्त हुआ। 
हो गया मौलिक इंसान,
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान,  
यह रचना हो रही है। 

धर्म राजनैतिक प्रदूषण,
दानव जाति का आभूषण।  
कर रहा शोषण आसान,  
पाया कहीं नहीं भगवान्, होगा धर्ममुक्त इंसान, 
यह रचना हो रही है। 
  

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