Monday, April 4, 2016

एकलव्य (One-way Love)




ना हँसी साथ तुम मेरे, रोती रहीं औरों के लिए।

झरते जब देखे आँसू, बुझे मेरी आशा के दिए। 
अब गीतों में जीता हूँ, मैं मरता हूँ इन गीतों में। 
औरों की बाँहों में तुम, निष्ठुर जग की रीतों में।  
तुम्हें हँसा नहीं पाया, मैं तुम्हें रुला नहीं पाया। 
तुम कैसे भूलीं मुझको, मैं तुम्हेँ भुला नहीँ पाया।

करके मुझको अनदेखा, तुमने अपने को खोया है। 
जीवन में सुख भरे हुए, फिर भी जग ऐसे रोया है। 
मैंने तुमसे प्रेम कियातब भी तुम प्रेमी खोज रहीं।  
धरे धरा पर पैर नहीं, तुम कल्पना में डूब रहीं।   
चली गईं तुम दूर बहुत, मैं तुम्हेँ बुला नहीं पाया। 
तुम कैसे भूलीं मुझको, मैं तुम्हेँ भुला नहीँ पाया।

तुमको देख दुखी इतना, मैंने भी सुख को ना जाना। 
हम तुम साथ रहे ऐसे, जैसे है आना संग जाना। 
जीवन दोनों मरीचिका, भ्रम में दोनों फँसे हुए।
तुम ही मेरी मंजिल हो, क्यों अंधकार में धंसे हुए।
तुम रहीँ जागती रात भर, मैं तुम्हें सुला नहीं पाया। 
तुम कैसे भूलीं मुझको, मैं तुम्हेँ भुला नहीँ पाया।

हुई व्यतीत ऋतु शरद, अब गर्माहट की दस्तक है। 
इसका मर्म ना जानी तुम, ये प्रकृति पूरी पुस्तक है। 
मैं ये पुस्तक पढ़ चुका, तुम प्राक्कथन पर अटकी हो।  
शरद प्रेम का कामदेव, ग्रीष्म वासना ने सटकी हो। 
इन के मध्य ऋतु बसन्त, मैं तुम्हेँ हुता नहीं पाया। 
तुम कैसे भूलीं मुझको, मैं तुम्हेँ भुला नहीँ पाया।
  
ऋतू बसन्त की पुकार मैं, अब नहीं कहीं सुनने वाला।  
तृप्ति का सागर मैं हूँ, तुम बन जाओ गागर बाला। 
देखो ना तुम रंग बसन्ततुम कैसी गजब अजूबी हो। 
मैं घूमा उपवन-उपवन, तुम अल्पना में डूबी हो।
तुम बँधी कल्पना में रहीँमैं तुम्हें खुला नहीँ पाया। 
तुम कैसे भूलीं मुझको, मैं तुम्हेँ भुला नहीँ पाया।

परिचित नहीं प्रेम से तुम, वासना रही तुमको भाती। 
मैं परिचित प्रेम सुकोमल, ऐसी तुम बन जाओ साथी। 
निर्मल जल  का झरना मैं, कंकड़ पत्थर क्यों रचतीं तुम।  
चाहूँ मैं तुम बन सुगन्धि, मुझमें क्यों नहीँ बसतीं तुम। 
तुम तो पत्थर बनी रहीँ, मैं तुम्हें घुला नहीं पाया। 
तुम कैसे भूलीं मुझको, मैं तुम्हेँ भुला नहीँ पाया।

अविचल प्रेम पुजारी मैं, तुम विचलित तन की बाला हो। 
मैं अमर प्रेम की ज्वाला, तुम सुरा काम की हाला हो।  
चाहूँ जानो प्रेम अमर, बन जाओ इस रस की ज्वाला।  
आत्मसात करलो इसको, जैसे धागा मोती माला।
अटल रहीँ जिद पर अपनी, मैं तुम्हें डुला नहीं पाया।
तुम कैसे भूलीं मुझको, मैं तुम्हेँ भुला नहीँ पाया।

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